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बुद्ध पूर्णिमाः दुनिया को युद्ध की नहीं, बुद्ध की जरूरत है

बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनायी जाती हैं। वैसे पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म, संबोधि एवं निर्वाण हुआ है। उनके जन्म से सिद्धार्थ बनने एवं बुद्धत्व तक की यात्रा एवं इससे जुड़ी कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं हैं। बुद्ध का लोकहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी, सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता रहेगा। गौतम बुद्ध एक प्रकाशस्तंभ है, जिसका प्रकाश केवल बाहरी दुनिया को ही नहीं, बल्कि भीतरी दुनिया को भी आलोकिक करता है। बुद्ध को सबसे महत्वपूर्ण भारतीय आध्यात्मिक महामनीषी, देवपुरुष, सिद्ध-संन्यासी, समाज-सुधारक धर्मगुरु माना जाता हैं। बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता हैए इस दृष्टि से हिन्दू धर्म में भी वे पूजनीय है। उन्हें धर्मक्रांति के साथ.साथ व्यक्ति एवं विचारक्रांति के सूत्रधार भी कह सकते हैं। उनकी क्रांतिवाणी उनके क्रांत व्यक्तित्व की द्योतक ही नहीं वरन् धार्मिकए सामाजिक विकृतियों एवं अंधरूढ़ियों पर तीव्र कटाक्ष एवं परिवर्तन की प्रेरणा भी हैए जिसने असंख्य मनुष्यों का जीवन.निर्माण किया एवं उनकी जीवन दिशा को बदला।
बुद्ध संन्यासी बनने से पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ थे। वे महलों में बंद न रह सके। उन्होंने सबसे पहले स्वयं ज्ञान.प्राप्ति का व्रत लिया था और वर्षों तक वनों में घूम-घूम कर तपस्या करके आत्मा को ज्ञान से आलोकित किया। उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य एवं प्रकाश के साथ जीया है, वह भारतीय ऋषि परम्परा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। स्वयं ने सत्य की ज्योति प्राप्त कीए प्रेरक जीवन जीया और फिर जनता में बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलन्द की। लोकजीवन को ऊंचा उठाने के उन्होंने जो हिमालयी प्रयत्न कियेए वे अद्भुत और आश्चर्यकारी हैं। बुद्ध ने 27 वर्ष में राजपाट छोड़ा, गहन साधना एवं स्व की खोज के लिये भ्रमण करते हुए काशी के समीप सारनाथ पहुंचेए जहाँ उन्होंने धर्म परिवर्तन किया। यहाँ बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचें कठोर तप किया। कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई और उसके बाद वह महान संन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से जाने गये और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को ज्योतिर्मय किया। कहा जाता है कि बुद्ध इतने गहरे ध्यान एवं साधना में लीन हो गये कि सारे देवता भी घबरा गये कि यह दुर्लभता एवं अलौकिक.गहन साधना से मिली संबोधि बुद्ध के लीन रहने से व्यर्थ न चली जाये। इसी संबोधि से तो विश्व का कल्याण होना है। इसलिये देवताओं ने बुद्ध से जागृत रहने एवं प्राप्त संबोध से विश्व का कल्याण करने की प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना को बुद्ध ने स्वीकारा और महानिर्वाण की अवस्था को त्याग कर जगत का कल्याण करने को अग्रसर हुए।

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Author: Sulahkul

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